ग्यारह वचन जो शिरडी मेँ आएगा,आपद दूर भगाएगा ।चढ़े समाधी की सीड़ी पर,पैर तले दु:ख की पीड़ी पर ।त्याग शरीर चला जाउंगा,भक्त हेतु दौड़ा आउंगा ।मन में रखना दृढ़ विश्वास,करे समाधी पूरी आस ।मुझे सदा जीवित ही जानो,अनुभव करो सत्य पहचानो ।मेरी शरण आ खाली जाए,हो कोई तो मुझे बताए ।जैसा भाव रहा जिस जन का,वैसा रूप रहा मेरे मन का ।आ सहायता लो भरपूर,जो मांगा वो नहीं है दूर ।भार तुम्हारा मुझ पर होगा,वचन ना मेरा झूठा होगा ।मुझ मे लीन वचन, मन, काया,उस का रिण ना कभी चुकाया । धन्य धन्य वो भक्त अनन्य,मेरी शरण तज जिसे ना अन्य । अंगद ओझा !!
No comments