अब तो हर गम सहने कि आदत सी हो गई है,रात को चुप चुप रोने कि आदत सी हो गई है,खेल मेरे दिल से जि भर के,अब तो चोट खाने कि आदत सी हो गई है अंगद ओझा ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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