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मैं भी कितना मूर्ख हूँ

मैं भी कितना मूर्ख हूँ
यह जानते हुए भी
नक्कारखाने में
तूंती की आवाज़
कोई नहीं सुनता 
निरंतर एक ही
अलाप करता रहता हूँ
"कोई समझता
क्यों नहीं है
क्यों स्वार्थ में जीता है
क्यों कोई रिश्तों को
बना कर नहीं रखता
क्यों कोई सब्र नहीं रखता"
मगर क्या करूँ
आदत से मज़बूर हूँ
जैसा सोचता हूँ
लोगों से वैसी ही
आशा भी करता हूँ ..

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