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चलती फिरती लाशे बन गए है हम।

चलती फिरती लाशे बन गए है हम। अगर बन ही गए है तो वाकई हमे सांस लेने का भी अधिकार नही। क्यों हो। गोद में पति का सर लिए मदद और बचाने की गुहार लगाती पत्नी और मौत का तमाशा देख कर उसका वीडियो बनाते हम लोग। न पुलिस वालों ने न आम इंसानो ने। किसी ने उठाने और जल्दी अस्पताल पहुचाने का प्रयास नही किया। अपराधी आता है। गोली मारता है और आराम से जाता है। स्टेशन का प्लेटफॉर्म नंबर 1। सैकड़ो की संख्या में लोग मौजूद, जीआरपी और आरपीएफ दोनो मौजूद। न अपराधी पकड़ा जाता है न घायल की जान बचती है। इस तरह की घटनाओं पर हमे दुख जताने की जरूरत नही। क्योंकि हम दुखी है ही नही। होते तो शायद वह नही होता जो कल रविवार को दिन के ढाई बजे सिवान रेलवे स्टेशन पर दिखा। धिक्कार है.........

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